Sunday, April 5, 2009

Vedic Dharma, Sanatan Dharma

मैं अक्सर यह चर्चा सुनता हूँ की हिंदू धर्म रुढिवादी है (Dogmatic) और कई नए धर्म वैसे नहीं हैं और यह हिंदू धर्म की कमजोरी है। लोगों को इस बारे में विचार करना चाहिए और विशेषकर हिन्दुओं को इन भ्रांतियों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। परन्तु प्रयत्न तो तभी किया जा सकता है जब कोई पहले उस विषय के बारे में थोड़ा जाने। कितने हिंदू घरों में धर्म या उस से सम्बंधित किसी विषय पर कोई रचनात्मक या विवेचनात्मक चर्चा होती है? यह एक चिंता का विषय है। केवल इसलिए नहीं की सनातन धर्म का ह्रास हो रहा है और यह अब जल्द ही शायद अपनी सनातन प्रकृति को त्याग दे। इसलिए कि इस के साथ ही धरा पर से एक विशाल, अत्यन्त सुंदर, विस्तृत और वैज्ञानिक संस्कृति का भी लोप हो जाएगा और लोग इसके सद्विचारों और विशाल विश्वरूप से सदा के लिए वंचित हो जायेंगे। हिन्दुओं का यह परम कर्तव्य है कि वे अपने धर्म को समझें, अपनी आस्थाओं को सुद्रढ़ करें और अपनी संस्कृति को तिलांजलि दे कर यहाँ - वहां नए धर्मों या मत-मतान्तरों के पीछे न भागते रहें।
यदि हम आज के भारत पर द्रष्टि डालें तो हम पाएंगे कि जो बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हो रहे हैं उनमें बौध सबसे अधिक प्रयत्नशील हैं। उसके बाद इसाई और फिर इस्लाम आते हैं। इन सभी धर्म प्रचारकों को यह पूरी फसल केवल हिंदू (सनातन धर्मी) समाज से ही प्राप्त होती है। इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। यह हमारे धर्म की भी कमजोरी नहीं है। यह हमारे समाज में धर्म को तिलांजलि देने का नतीजा है। हिंदू प्रचारक, धर्मगुरु और शंकराचार्य सभी दर्शन और ज्ञान की आड़ ले कर धर्म प्रचार और धर्म रक्षा और प्रसार के बजाय कोरी भ्रांतियों को ही फैलाने में लगे रहते हैं। प्रवचनों में मैं कभी नहीं सुनता की लोगो को धर्म पालन और धर्म रक्षा का आह्वान होता हो। ऐसे आह्वान किसी के विरुद्ध न होकर केवल अपनी आस्थाओं को दृढ़ करने और अपने लोगों को अपने धर्म में रहने के लिए प्रेरित करने तथा बिछुडे हुए लोगों को वापस अपने साथ लाने के लिए हो सकते हैं और इसमें किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए।
जहां तक वैदिक या सनातन धर्म की बात है तो यह कहा जा सकता है कि यदि कोई धर्म pragmatic है या रूढीवाद से ऊपर है तो वो यही धर्म है। हम यदि इसमें से राम, कृष्ण और अन्यान्य अवतार पुरुषों को हटा भी दें यह धर्म इतिहास के इस सन्दर्भ के बिना भी जीवंत है क्योंकि यह ज्ञान, दर्शन, सत्य की  खोज और उसकी समझ पर आधारित है। इस धर्म का न तो कोई एक प्रवर्तक है और न ही यह किसी एक भगवद दूत पर निर्भर है। जो धर्म एक प्रवर्तक के चलाये हुए हैं उनका अस्तित्व इस सुबूत पर निर्भर है कि वह प्रवर्तक था और वह वही था जिसे उसका श्रेय दिया जा रहा है। वे बिना उस व्यक्ति के प्रमाण के आधारहीन हो जायेंगे। और प्रमाण तो माने हुए हैं। उन पर प्रश्न चिन्ह लग सकते हैं। ये तो वेदों पर आधारित है और वे किसी एक अवतार, स्वरुप या विग्रह के मोहताज नहीं है। इसीलिए इसमें लगातार लिखा जाता रहा, ऋचाएं जुड़ती रहीं और इसका विस्तार होता रहा। मैंने इस के वैज्ञानिक स्वरुप पर बहुत विचार किया है जो मैं आगे चल कर लिखता रहूँगा। इस धर्म में विचारों के स्वातंत्रय के पूरा स्थान है। अन्य धर्मों में ऐसा न के बराबर है या नहीं है। तो फिर dogmatic कौन है और क्या है?

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